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सूरत शहर और हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम की ऐतिहासिक कथा

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सूरत शहर का इतिहास केवल बंदरगाह व व्यापार तक सीमित नहीं है, हमारे पुरातन सूर्यपुर का इतिहास तो हमारे महान प्रमुख दो ग्रंथ रामायण एवं महाभारत के साथ मुगल शासन के अकबर,औरंगजेब, जहाँगीर जैसे नामों के साथ भी जुड़ा हुआ हैं। सूरत शहर के आध्यात्मिक इतिहास में रामायण की बात करें तो, प्रथम नाम आता है हमारे आराध्य भगवान श्रीराम और उनके पिता राजा दशरथ का, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम और राजा दशरथ के जीवन प्रसंग के कुछ पहेलु का हिस्सा रहे।

कंटारेश्‍वर महादेव मंदिर।

सूरत में एक पौराणिक मंदिर है, जिसका उल्लेख तापी पुराण में मिलता है और जो भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ है। मंदिर में पूजा की एक अनूठी परंपरा है, जहाँ पहली आरती गणेशजी की नहीं, बल्कि सूर्य देव की की जाती है।

रामनाथ शिव घेला मंदिर

 सूरत में एक मंदिर है, जहाँ भगवान शिव के भक्त मकर संक्रांति के त्यौहार के पवन दिवस पर शिवलिंग पर जीवित केकड़े चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यह परंपरा रामायण की एक कहानी से उत्पन्न हुई है, जहाँ भगवान श्रीराम ने समुद्र पार करते समय अपने पैरों पर बह रहे केकड़े को आशीर्वाद दिया था।

सोने से लिखी रामायण।

 सूरत के एक राम भक्त ने 1981 में एक स्वर्ण रामायण पुस्तक बनाई। यह पुस्तक 222 तोले सोने, हीरे और झवेरात से बनी है और इसका वजन 19 किलोग्राम है। इसे साल में केवल एक बार राम नवमी के अवसर पर जनता के दर्शन के लिए लाया जाता है।

भगवान राम की छवियों वाली साड़ी।         

हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर के 565 वर्ष के संघर्ष के बाद न्यायिक मार्ग से मिले हक के बाद जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर बनना शरू हुआ और जब मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा का अवसर आया तब सम्पूर्ण भारत के साथ पूरा विश्व भी राम मय हो गया था। इस प्रसंग में हमारे सूरत में भगवानश्री राम और अयोध्या मंदिर की छवियों वाली एक विशेष साड़ी तैयार करके अयोध्या भेजी गई थी।

पढ़ें: राजा दशरथ और सूरत की ताप्ती नदी
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