महाभारत की कथा के अनुरूप दानवीर कर्ण की मृत्यु में भगवान कृष्ण निमित थे। आपको ज्ञात होगा’ कि, मृत्यु के बाद दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार सूरत में हुआ था, हमारे पौराणिक दो प्रमुख ग्रंथ रामायण और महाभारत हिंदू संस्कृति की नींव हैं। महाभारत हमें जीवन जीने का तरीका सिखाती है। महाभारत में एक से बढ़कर एक महात्माओं का जिक्र है, जिनमें से एक हैं कर्ण। बहुत कम लोग जानते हैं कि, महाभारत के कर्ण का दाह संस्कार सूरत में हुआ था। कर्ण का दाह संस्कार सूरत में ही क्यों किया गया, इसके पीछे भी एक कहानी हैं।
पांडवों की माता कुंती के सबसे बड़े पुत्र, दानवीर कर्ण की जीवन गाथा के बारे में तो हमने बहुत कुछ सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी उनकी मृत्यु के बारे में सुना है ?
जब महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध चल रहा था, तब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया था। तब कर्ण ने अपने पितामह भीष्म द्वारा बनाए गए नियमों की चर्चा करते हुए अर्जुन से कहा, "हे अर्जुन, जब तक मैं रथ का पहिया नहीं निकाल देता, तब तक तुम मुझ पर आक्रमण नहीं करोगे।" यह सुनकर अर्जुन रुक गए। तब भगवान कृष्ण ने कहा, हे अर्जुन, तुम रुक क्यों रहे हो ? बाण चलाओ। जब अर्जुन ने कहा कि वे युद्ध नियम के विरुद्ध हैं। तब भगवान कृष्ण ने उन्हें याद दिलाया कि अभिमन्यु अकेले लड़ रहा था, तब उन्हें युद्ध के नियम का खयाल नहीं आया। क्या उन्हें याद नहीं कि जब सभागार में द्रौपदी के साथ दुर्व्यवहार किया गया था, तब नियमों का उल्लंघन हुआ नहीं हुआ था ? यह बात सुनकर अर्जुन क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान शिव द्वारा दिए गए अस्त्र से कर्ण पर आक्रमण कर दिया। अर्जुन के इस बाण से कर्ण मृत्यु के निकट पहुंच गए। जब कर्ण अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण की परीक्षा लेने हेतु ब्राह्मण का रूप धारण किया और कहा, 'हे कर्ण, मेरी बेटी का विवाह हो रहा है और मेरे पास उसे देने के लिए सोना नहीं है, इसलिए मुझे कुछ सोना दे दो।' तब कर्ण ने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं आपको क्या दान कर सकता हूं ?
तब ब्राह्मण(श्रीकृष्ण) ने कहा कि तुम्हारे पास सोने का दांत है। इसे दान कर दो। कर्ण ने कहा, मुझे पत्थर से मार कर मेरा दांत तोड़ दो। ब्राह्मण(श्रीकृष्ण) ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि वह स्वयं दान कर दे। इसके बाद कर्ण ने अपने पास पड़ा पत्थर उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर ब्राह्मण(श्रीकृष्ण) को दे दिया। इस पर ब्राह्मण(श्रीकृष्ण) ने कहा कि वह दांत गंदा हो गया है, इसे साफ कर लो। इस पर कर्ण ने जब अपने धनुष से धरती पर बाण चलाया तो वहां से गंगा की तेज धारा निकली। अपने दांत धोने के बाद कर्ण ने कहा कि अब वह स्वच्छ हो गया है। इसके बाद कर्ण को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है, यह तो परमात्मा है। तब कर्ण ने कहाँ, तुम मुझे अपना असली रूप दिखाओ। बाद में भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। तब श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा कि "तुम्हारा बाण गंगा युगों-युगों तक तुम्हारा गुणगान करता रहेगा।" संसार में तुम्हारे जैसा महान दानी न कभी हुआ है और न कभी होगा।
श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग सकता है। कर्ण ने कृष्ण से कहा कि उसके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, क्योंकि वह एक गरीब सारथी का पुत्र है। भविष्य में जब कृष्ण जी धरती पर आएं तो पिछड़े वर्ग के लोगों का जीवन सुधारने का प्रयास करें। इसके साथ ही कर्ण ने दो और वरदान मांगे।
दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने कहा कि अगले जन्म में कृष्ण उसके राज्य में जन्म लें और तीसरे वरदान में उसने श्री कृष्ण से मांगा कि उसका अंतिम संस्कार कुंवारी भूमि पर किया जाए।
समग्र वसुंधरा पर खोज करने पर सूर्य पुत्री तापी के पवित्र तट पर बसे हमारे सूर्यपुर(सूरत) में केवल एक दंड जितनी एसी कुंवारी भूमि और कुंवारी नदी ही मिली, तापी नदी को कुवारी माता नदी के नाम से भी जाना जाता है।
इसी तापी नदी के तट पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया गया था और आज भी यहां कर्ण का मंदिर है। सूरत का चारधाम मंदिर और तीन पत्तों वाला बरगद का पेड़ कर्ण के अंतिम संस्कार का प्रमाण है। तापी नदी के तट पर कर्ण के अंतिम संस्कार के बाद जब पांडवों ने कुंवारी भूमि को लेकर संदेह जताया तो श्री कृष्ण ने कर्ण को दर्शन दिए और हवा के माध्यम से बताया कि वह सूर्य का पुत्र है और अश्विनी और कुमार उसके भाई हैं। तापी उसकी बहन है। इसलिए उसका अंतिम संस्कार कुंवारी भूमि पर ही किया गया। इसके बाद पांडवों ने कहा कि हमें तो पता चल गया है, लेकिन आने वाले युगों को कैसे पता चलेगा ? तब भगवान कृष्ण ने कहा कि यहां एक तीन पत्तों वाला वृक्ष होगा जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक होगा। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई सच्ची आस्था के साथ यहां प्रार्थना करता है, तो उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। इस प्रकार, यह वृक्ष आज भी सूरत में तापी नदी के तट पर है और इसके पास ही तीन पत्तों वाला एक बरगद का वृक्ष है। जिसे अग्रेजी भाषा में थ्री लीफ क्लोवर के नाम से जाना जाता है।