रामायण में आते एक प्रसंग में राजा दशरथ के वचनों के कारण जल भरते समय श्रवण कुमार की अकाल मृत्यु होती है। अपने पुत्र की मृत्यु से दुखी होकर श्रवण कुमार के माता-पिता राजा दशरथ को श्राप देते है कि, उनकी मृत्यु भी अपने एक पुत्र के प्रेम से वंचित होकर होगी। राम के वनवास के बाद अपने पुत्र को न देख पाने के दुख में राजा दशरथ की मृत्यु हो जाती है, लेकिन उन्हें मिले श्राप के कारण वे स्वर्ग प्राप्त नहीं कर सके। बड़े पुत्र के जीवित रहते दूसरे पुत्र द्वारा किए गए अंतिम संस्कार और कर्मकांड भी शास्त्रों के अनुसार मान्य नहीं हैं। ऐसी स्थिति में राजा दशरथ को मोक्ष नहीं मिल सका। भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम को राजा दशरथ द्वारा ताप्ती के महात्म्य के बारे में बताई गई कथा का ज्ञान था, इसलिए उन्होंने सूर्यपुत्री देवकन्या मां आदिगंगा ताप्ती के तट पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण और अपनी अर्धांगिनी सीता माता की उपस्थिति में ताप्ती नदी में अपने पूर्वजों और अपने पिता का तर्पण कार्य संपन्न किया। भगवान श्री राम ने बारह लिंग नामक स्थान पर रुककर यहां भगवान विश्वकर्मा की मदद से ताप्ती के तट पर स्थित चट्टानों पर 12 लिंगों की आकृति उकेरी और उनकी प्राण प्रतिष्ठा की। आज भी बारहलिंग में ताप्ती स्नान जैसे कई ऐसे स्थान हैं, जो यहां भगवान श्री राम और माता सीता की मौजूदगी का प्रमाण देते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा देवलघाट नामक स्थान पर ताप्ती नदी के बीच स्थित एक चट्टान के नीचे बनी सुरंग से स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए थे।